किसी भी त्यौहार , शादी ब्याह ,बच्चे के जन्म जैसे अनेको उत्सवो पर यह घर के दरवाजों पर दस्तक देते नज़र आ जाते है | आस पड़ोस के लोग इन्हें घूर घूर कर देखते ,कभी इन पर हस देते है तो कभी गालियाँ देकर भगा देते है| इन्हें हम हिजड़े ,छक्के ,किन्नर और न जाने किन किन नामो से पूकारते है | इन्हें शुभ संकेतो के रूप में देखा जाता है तो इसी समाज में लोग इनसे किनारा करते हुए भी नज़र आते है लेकिन ऐसी भी क्या बेरुखी की इनके वजूद पर की सवाल खड़े कर दिए जाये | इंसान की पहचान ही उसके वजूद को जीने की वजह देती है लेकिन जब किसी से उसकी पहचान ही छीन ली जाये तब ? डर लगता है न अपनी पहचान खोने से ? लेकिन हमारे देश में ५ लाख किन्नर ऐसे है जो अपनी पहचान की लड़ाई लड़ रहे है| वैसे हमारे देश में कमाल की बात है कि चुनाव आयोग और जनगणना के आंकड़ों की मानें तो देशभर में एक भी किन्नर नहीं है। यह सुनकर आप चौंक सकते हैं, लेकिन यह सच है। वोटर आईडी कार्ड में लिंग वाला कॉलम भरते समय मेल या फीमेल यानी महिला या पुरुष में से एक ऑप्शन ही चुनना पड़ेगा। यानी आयोग मानता है कि देश में एक भी किन्नर नहीं है| एक तरफ तो समाज इन्हें एक तीसरी जाति के रूप में देखा जाता है तो वही सरकार आजतक इनकी पहचान दिलाने के बारे में सोचना तक ज़रूरी नहीं समझती | यह हमारे लिए शर्म की बात है कि किसी ने इस बात पर गौर करने तक की ज़हमत तक नही की लेकिन हाँ किन्नरों को देख कर हंसने ,ताने मारने और उन्हें देख कर मुंह मोड़ने में सब ज्ञानी है |
वैसे हमारे देश में आज तक किसी भी जनगणना में किन्नरों की गिनती नहीं की गई है। 2001 की जनगणना के मुताबिक देश में या तो महिलाएं हैं या पुरुष हैं, लेकिन किन्नर समाज का कोई अस्तित्व ही नहीं है। 2011 में शुरू हुई जनगणना में सरकार ने पहली बार लिंग वाले कॉलम में महिला या पुरुष के साथ अन्य का भी ऑप्शन दिया है। पहचान की इस लड़ाई में कई सवाल हैं। किन्नरों के लिए वोटर आईडी जैसे कार्ड में कोई पहचान नहीं दे रखी है। मोबाइल फोन की सिम लेनी हो या किसी बैंक में खाता खुलवाना हो, वोटर आईडी की जरूरत पड़ती ही है। लेकिन किन्नरों को इस आईडी के नाम पर एक झूठी पहचान ही अपने साथ ढोनी पड़ रही है। किन्नर आज भी कागजों पर केवल औरत या आदमी ही हैं। लेकिन तमाम ज़िन्दगी कागजों के सहारे नहीं जी जा सकती हर व्यक्ति समाज में अपनी पहचान बनाना चाहता है लेकिन जब यही पहचान समाज द्वारा छीन ली गयी हो तो चाहते हुए भी वह न ही इस देश का हिस्सा बन पता है न ही समाज का बस लोगो की हंसी व गुस्से का पात्र मात्र रह जाता है | लोगों की बलाएं लेने वाले किन्नरों का पीछा कर रही बलाओं को खत्म करने की फिक्र भी जरूरी है।
वैसे हमारे देश में आज तक किसी भी जनगणना में किन्नरों की गिनती नहीं की गई है। 2001 की जनगणना के मुताबिक देश में या तो महिलाएं हैं या पुरुष हैं, लेकिन किन्नर समाज का कोई अस्तित्व ही नहीं है। 2011 में शुरू हुई जनगणना में सरकार ने पहली बार लिंग वाले कॉलम में महिला या पुरुष के साथ अन्य का भी ऑप्शन दिया है। पहचान की इस लड़ाई में कई सवाल हैं। किन्नरों के लिए वोटर आईडी जैसे कार्ड में कोई पहचान नहीं दे रखी है। मोबाइल फोन की सिम लेनी हो या किसी बैंक में खाता खुलवाना हो, वोटर आईडी की जरूरत पड़ती ही है। लेकिन किन्नरों को इस आईडी के नाम पर एक झूठी पहचान ही अपने साथ ढोनी पड़ रही है। किन्नर आज भी कागजों पर केवल औरत या आदमी ही हैं। लेकिन तमाम ज़िन्दगी कागजों के सहारे नहीं जी जा सकती हर व्यक्ति समाज में अपनी पहचान बनाना चाहता है लेकिन जब यही पहचान समाज द्वारा छीन ली गयी हो तो चाहते हुए भी वह न ही इस देश का हिस्सा बन पता है न ही समाज का बस लोगो की हंसी व गुस्से का पात्र मात्र रह जाता है | लोगों की बलाएं लेने वाले किन्नरों का पीछा कर रही बलाओं को खत्म करने की फिक्र भी जरूरी है।